Wednesday, May 4, 2011

मरीचिका

रेगिस्तान में पानी बहुत गहरा होता है
धरातल पर होती है सिर्फ मरीचिका
मृग और मानुष दोनों ही
दौड़ते रहते है मरने तक
उस पानी की तलाश में जो कहीं है ही नहीं

रेत को हमेशा ही दया आती है
दोनों की ऐसी अज्ञानी और भोली मौत पर
आँखों में रड़क कर
रेत देती रहती है प्रमाण
पानी के न होने का

नहीं चेतते पर मानुष या मृग
पानी की लुभावनी सम्मोहक प्रतिछवि
खींचती है लगातार
नहीं छोड़ पाते इस सम्मोहन को
मानुष या मृग दोनों ही

पानी जीवन है
पानी अर्थपूर्ण है
पानी सम्मोहन है
पानी आकर्षण है
किन्तु पानी की प्रतिछवि साक्षात् मौत है
ये नहीं समझ पाता आदमी

आभास को पानी समझ कर
रेगिस्तान में पानी के पीछे दौड़ता आदमी
ऐसे ही छला जाता है बार बार
जीवन की चाह सिर्फ मौत देती है
मरीचिका हंसती है
रेत विमूढ़ देखती है
कहती है
तू ढूँढता रहा पानी
ये जानते हुए भी
की रेगिस्तान में सच केवल रेत है
पानी हमेशा ही मरीचिका है

2 comments:

Avirat Prerna said...

मृग -मरीचिका जीवन की छलनाएँ हैं
जो छलती हैं पग -पग पर चलते -चलते
प्रवंचनाओं की चमकदार मरीचिकाएँ हैं
जो हंसती हैं डग -डग पर छलते -छलते ....प्रेरणा .
वाह ....कितना गहन जीवन - दर्शन छुपा है ..आपकी कविता में ..मैंने भी आपके शब्दों में अपने शब्द मिलाने का साहस और प्रयास किया है ...
कैसा लगा ...कृपया बताइयेगा ...

ashvaghosh said...

bahut arth poorn hai aur saarthak bhi aap ki panktiyan ...........pravanchanaon ,chalanaon aur marichikaon ke madhy se hi nikalata hai kahin marg..........abhaar aap ka