Tuesday, May 3, 2011

प्यार रेत से

शायद मैं कभी भी न लिख पाऊँ कोई प्रेम कविता
क्यों कि जितनी शिद्दत से महसूस किया जाता है प्रेम
उस से अधिक शिद्दत से महसूस करता हूँ मैं रेत को
मेरे इस दिव्य रिश्ते को मैं नहीं दे सकता
प्रेम कविताओं में प्रयुक्त
जूठे शब्द, प्रतीक और उपमाएं

रेत के मूर्त्त और अमूर्त्त चित्र
उकेरे हुए है मेरे अन्दर
मैंने पल पल जिया है
इन लुभावने चित्रों को
मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा है ये

मन के बहुत अन्दर तक पैठे है ये चित्र
मैं जानता हूँ
कोई सर्जन भी शरीर के अंग भले ही काट पीट ले
मन को काटना उसे नहीं आता

रेत कि थपकियाँ
रेत का सूना संगीत
रेत के टीले से लुढ़कने कि मस्ती
टीला दर टीला रेत की बस्ती
खोई खोई सी रेतीली शाम
जागी जागी सी नशीली सुबह
सब जिंदा है मुझ में

रेत के सौन्दर्य को जिया है जिस ने
लौट लौट आता है वो
लौटता हूँ मैं भी
रेत से प्यार जताने को
मैं भी रेत ही हूँ बताने को

No comments: