Thursday, May 5, 2011

निशाना दिखता है

इक पल जीना इक पल मरना दिखता है
मेरा गिरना और संभलना दिखता है

इक बूढ़े चेहरे को पढ़ना आये तो
हर झुर्री में एक जमाना दिखता है

जब कोई गुलशन की बातें करता है
मुझ को बस इक नया बहाना दिखता है

एक कहानी नानी की सुन जो सोता
उसे ख्वाब में एक खज़ाना दिखता है

बिस्तर की सलवट को कितना ठीक करो
जब चादर का रंग पुराना दिखता है

कल तक वो सच्चा इन्सां कहलाता था
गलियों में जो एक दीवाना दिखता है

देख फिजा में ये दहशत का साया है
शहर नहीं अब गाँव निशाना दिखता है

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