इस साल भी रब्बुड़ी
नहीं जायेगी मायके
इस साल भी सूना र्रहेगा नीम
नहीं डलेगा कोई झूला
इस साल भी दिसावर ही रहेगा
मरवण का साहबा
इस साल भी रब्बुड़ी
इंतजार करेगी काग का
और मरवण मनुहार करेगी
कुरजां की
रेगिस्तान
एक अनंत प्रतीक्षा है
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चौकड़ी भरेगा हरिण
बालू रेत पर सरसरायेंगे
बांडी, पैणे
सांडा और गोह भी
दिख जाये शायद
गोडावण भी
दौड़ जायेगी लोमड़ी सामने से
खरगोश,तीतर
दुबके होंगे जान बचा कर
सेहली डरा रही होगी
अपने नुकीले काँटों से
शायद दिख जाये
बाज का झपट्टा भी
इतना वीरान भी
नहीं होता रेगिस्तान
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