Saturday, June 25, 2011

sawan ke dohe ,tatha kuchh any bhi

बादल बरसा टूट कर,नेह भरा अनुबंध
हुलस हुलस नदिया बही,टूट गए तटबंध

बूँद बूँद बरसा कभी,कभी मूसलाधार
आवारा सावन करे,मनमौजी व्यवहार

फिर से इक दिन आयेगा,फिर से होगी रात
फिर फिर सावन आयेगा,फिर होगी बरसात

ये सावन है हाथ में,पूरे कर सब चाव
क्या जाने कितना चले,ये कागज़ की नाव

बिजली कडकी जोर से,घिरी घटा घनघोर
दबे पाँव बाहर हुआ,मेरे मन का चोर

ये सावन है सोलवां,कर सोलह श्रृंगार
ये नदिया बरसात की,बहनी है दिन चार

उठी अनूठी बादली,घटाटोप आकाश
फिर भी बाकी रह गयी,इस धरती की प्यास

तन भीगे तो बात क्या,मन भीगे तो बात
बूंदों की है जात क्या,आंसू की है जात

रिम झिम का संगीत है,बूँद बूँद अनमोल
पानी का ही तोल है,पानी का ही मोल

ये सावन के चोंचले,अब बदली अब धूप
जीवन फिर आकाश है,कितने बदले रूप

आषाढी आकाश से,टपकी पहली बूँद
कोई जीवन पी गया,छत पर आँखें मूँद

सावन की अठखेलियाँ,अब गुमसुम,अब शोर
बिन सूरज फिर आ गयी, भीगी भीगी भोर

भीगी भीगी भोर थी,अभी चटकती धूप
ये जीवन का तौर है,पल पल बदले रूप

कहीं टपकती झोंपड़ी ,कहीं चल रहे दौर
ये सावन कुछ और है,वो सावन कुछ और
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सब कुछ मिलता मोल से,सांस मिले बिन मोल
मोल मिला किस काम का,बिना मोल अनमोल

मैं कहता संसार है,तू माया का जाल
आ देखें निकले अगर,कहीं बाल की खाल

आँगन आँगन लोग हैं,देहरी देहरी चाह
मंदिर मंदिर देवता,चौखट चौखट आह

सगा सहोदर दूर है,और पड़ोसी पास
रिश्तों से आने लगी कैसे खट्टी बास

कूड़े फांदे मौज में समय गैंद का खेल
ये घोडा बिगडैल है लेता नहीं नकेल

आँगन बेटी डोलती जैसे सपन अडोल
बाप चुका पाया नहीं उस सपने का मोल

सूरज को लुढ़का गया फिर कोई इस ओर
सुबह सवेरे आ गयी अलसाई सी भोर

कहीं सीढियाँ बन रहे, कहीं बिछौने लोग
औने पौने बिक रहे,बौने बौने लोग

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