टूट कर बरसी बरसात के बाद
इन टीलों पर
बहुत आसान होता है
रेत को किसी भी रूप में ढालना
मेरे पाँव पर
रेत को थपक थपक कर
तुम ने जो इग्लुनुमा
रचना बनाई थी
कहा था उसे घर
मैं भी बहुत तल्लीनता से
इकट्ठे कर रहा था
उसे सजाने के सामान
कोई तिनका,कंकर,काँटा
किसी झाड़ी की डाली
कोई यूँ ही सा जंगली फूल
चिकनी मिटटी के ढेले
तुम ने सब कोई नाम
कोई अर्थ दे दिया था
अगले दिन जब
हम वहां पहुंचे
तो कुछ नहीं था
एक आंधी उड़ा ले गयी थी
सब कुछ
तब हम कितनी शिद्दत से
महसूस करते थे
छोटे छोटे सुख दुःख
कहाँ जानता था तब मैं
ज़िन्दगी ऐसे ही
घरोंदे बनाने
और सुख दुःख सहेजने का नाम है
1 comment:
mabifyiबहुत सुंदर, अश्वनी भैय्या जी........!!
Post a Comment