Thursday, June 23, 2011

barsat ret aur zindagi

टूट कर बरसी बरसात के बाद
इन टीलों पर
बहुत आसान होता है
रेत को किसी भी रूप में ढालना

मेरे पाँव पर
रेत को थपक थपक कर
तुम ने जो इग्लुनुमा
रचना बनाई थी
कहा था उसे घर

मैं भी बहुत तल्लीनता से
इकट्ठे कर रहा था
उसे सजाने के सामान
कोई तिनका,कंकर,काँटा
किसी झाड़ी की डाली
कोई यूँ ही सा जंगली फूल
चिकनी मिटटी के ढेले

तुम ने सब कोई नाम
कोई अर्थ दे दिया था

अगले दिन जब
हम वहां पहुंचे
तो कुछ नहीं था
एक आंधी उड़ा ले गयी थी
सब कुछ

तब हम कितनी शिद्दत से
महसूस करते थे
छोटे छोटे सुख दुःख

कहाँ जानता था तब मैं
ज़िन्दगी ऐसे ही
घरोंदे बनाने
और सुख दुःख सहेजने का नाम है

1 comment:

Dinesh Mishra said...

mabifyiबहुत सुंदर, अश्वनी भैय्या जी........!!