तापमापी के पारे पर
कसा जाता है रेत का धैर्य
ऊपर नीचे होते पारे को
रेत ताक़ती है
मॉनिटर पर चलते
ह्रदय की धड़कन के ग्राफ की तरह
ग्राफ बता सकता है
ह्रदय की धड़कन की गति
लेकिन नहीं नाप सकता
ह्रदय के भाव,कल्पनाएँ,उड़ान
वैसे ही पारा जानता है
रेत का ताप
लेकिन नहीं जान सकता
रेत की गहराई
रेत का दर्द
कैसे बन जाते हैं
समुद्र की लहरों से
एक के बाद एक
रेत के सम रूपाकार
छुपे छुपे हैं रेत के राज
किसी स्त्री मन की तरह
नहीं माप पायेगा तापमापी कभी भी कि रेत
क्यों गाती है चांदनी रात में
क्यों हरख जाती है पहली बरसात में
क्यों अलसाती है पूस कि रात में
क्यों चुपचाप होती है जेठ कि दुपहरी में
क्यों बन जाती है
काली-कराली आंधी
चक्रवात,प्रभंजन
असहनीय हो जाता है जब ताप
1 comment:
बहुत खूब ...अश्वनी जी ....बधाई स्वीकार कीजिये ...
छुपे - छुपे हैं रेत के राज़
किसी स्त्री मन की तरह ......सुंदर अभिव्यक्ति लगी.
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