Wednesday, June 8, 2011

taapmapi aur ret

तापमापी के पारे पर
कसा जाता है रेत का धैर्य
ऊपर नीचे होते पारे को
रेत ताक़ती है
मॉनिटर पर चलते
ह्रदय की धड़कन के ग्राफ की तरह
ग्राफ बता सकता है
ह्रदय की धड़कन की गति
लेकिन नहीं नाप सकता
ह्रदय के भाव,कल्पनाएँ,उड़ान

वैसे ही पारा जानता है
रेत का ताप
लेकिन नहीं जान सकता
रेत की गहराई
रेत का दर्द
कैसे बन जाते हैं
समुद्र की लहरों से
एक के बाद एक
रेत के सम रूपाकार
छुपे छुपे हैं रेत के राज
किसी स्त्री मन की तरह

नहीं माप पायेगा तापमापी कभी भी कि रेत
क्यों गाती है चांदनी रात में
क्यों हरख जाती है पहली बरसात में
क्यों अलसाती है पूस कि रात में
क्यों चुपचाप होती है जेठ कि दुपहरी में
क्यों बन जाती है
काली-कराली आंधी
चक्रवात,प्रभंजन
असहनीय हो जाता है जब ताप

1 comment:

Avirat Prerna said...

बहुत खूब ...अश्वनी जी ....बधाई स्वीकार कीजिये ...
छुपे - छुपे हैं रेत के राज़
किसी स्त्री मन की तरह ......सुंदर अभिव्यक्ति लगी.